हेपाटाइटिस के प्रकार, लक्षण, बचाव और उपचार
हेपाटाइटिस एड्स की तरह एक खतरनाक बीमारी है. हेपाटाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या एड्स से 30 प्रतिशत अधिक है. इसका सबसे खतरनाक पहलू यह है कि जब तक इसके लक्षण उभरते है तब तक लिवर का 80 प्रतिशत हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका होता है.
यदि परिवार में एक सदस्य को यह बीमारी हुई है तो परिवार के सभी सदस्यों के रक्त की जांच करवानी चाहिए.
हेपाटाइटिस कई प्रकार के होते हैं.
1. हेपाटाइटिस ‘ए’
हेपाटाइटिस ‘ए’ को पीलिया होने का सबसे सामान्य कारण माना जाता है. हेपाटाइटिस ‘ए’ कुछ सप्ताह में ठीक हो जाता है. यह बड़ों की अपेक्षा बच्चों में अधिक देखा जाता है. यह वायरस, लिवर की कोशिकाओं पर हमला करता है. लक्षण प्रकट होने के दो सप्ताह पहले और एक सप्ताह बात तक इसके वायरस प्रभावकारी होते हैं.
इसके वायरस दूषित पानी, दूध, गदें हाथ व बर्तनों और बासी भोजन से फैलता है. इस रोग का टीका उपलब्ध होने से इसका इलाज संभव है.
2. हेपाटाइटिस ‘ई’
यह वायरस दूषित पानी, दूषित भोजन और गंदगी से फैलता है. इसे जानलेवा नहीं माना जाता है. इसके वायरस दो तीन सप्ताह में नष्ट हो जाते हैं.
लेकिन किसी गर्भवति महिला को होने पर 2-4 प्रतिशत जानलेवा हो सकता है. हेपाटाइटिस ‘ई’ का टीका उपलब्ध नहीं है. इसके बचाब के लिए साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है.
3. हेपाटाइटिस ‘बी’
यह वायरस संक्रमित रक्त चढ़ाने, संक्रमित इंजेक्शन, संक्रमित आॅपरेशन के औजार, असुरक्षित यौन संबंध द्वारा फैलता है. संक्रमित मां द्वारा शिशु को हो सकता है. हेपाटाइटिस बी का पता सही समय पर नहीं लगने से यह लिवर सोराइसिस और लिवर कैंसर में तब्दील हो जाता है.
हेपाटाइटिस ‘बी’ के लक्षण वर्षो तक सामने नहीं आते हैं और मरीज अपनी सामान्य जिंदगी जीता रहता है. जब यह लक्षण सामने आता हंै, तब तक लिवर का 80 प्रतिशत हिस्सा खराब हो चुका होता है.
4. हेपाटाइटिस ‘सी’
हेपाटाइटिस ‘सी’ का संक्रमण पेशेवर रक्तदाता, खतना, गोदना, इंजेक्सन के सीरिंज, आॅपरेशन के औजार आदि से फैलता हैं. इस वायरस के कारण साधारण पीलिया की शिकायत होती है. इससे पीड़ित 50 प्रतिशत मरीज को लिवर सोराइसिस की शिकायत होती है. उन्हें आगे चल कर लिवर कैसर की शिकायत हो जाती है.
5 हेपाटाइटिस ‘डी’
इसका संक्रमण हेपाटाइटिस ‘बी’ के साथ होता है. जब दोनों एक साथ हो तो खतरनाक स्थिति बन जाती है. हेपाटाइटिस ‘बी’ के टीका से इसका भी बचाव हो जाता है.
6 हेपाटाइटिस ‘एफ’
हेपाटाइटिस ‘एफ’, हेपाटाइटिस ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’ की तरह ही फैलता है. इस के वायरस के बारे में अभी तक कोई खास जानकारी नहीं मिल पायी है. इस बारे में अनुसंधान जारी है.
हेपाटाइटिस के सामान्य लक्षण
शुरूआत में कुछ हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे
- जी मिचलाना
- उल्टी-दस्त लगना
- भूख न लगना
- पेशाब पीला होना
- बेचैनी होना
- बुखार आना
- मुंह का स्वाद बिगड़ जाना
- हाथ पैर में दर्द, बदन या जोड़-जोड़ में दर्द होना
इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर डाॅक्टर से जांच करवाएं. क्योंकि जांच द्वारा ही इस बीमारी के बारे में सही पता चल सकता है.
सावधानियां
- दूषित पानी व दूषित भोजन के सेवन से बचें।
- इंजेक्शन लगाने के लिए डिस्पोजेबल सीरिंज व नीडिल का उपयोग करंे।
- आॅपरेशन, नाक-कान छेदवाने, खतना, गोदना, दांत निकलवाने आदि के समय स्टारलाइज्ड का ध्यान दें।
- पंजीकृत ब्लड बैंक से ही ब्लड लें.
- यदि पीलिया हो तो उसकी जांच विशेषज्ञ से कराएं.
- असुरक्षित यौन संबंधों से बचें.
- बच्चों को हेपाटाइटिस-बी का टीकाकरण जरूर कराएं.
- पीड़ित व्यक्ति के परिवार में रहने वाले सभी व्यक्तियों को असंक्रमित होने पर टीकाकरण कराएं.
हाई रिस्क
- हेपाटाइटिस ‘बी’ और ‘सी’ से संक्रमित मरीजों के परिजन को.
- ऐसे व्यक्ति जिन्हें पहले पीलिया हो चुका हैं और उन्हें रक्त लेने की आवश्यकता पड़ी हो.
- असुरक्षित यौन संबंध रखने वालो को.
- नशीले पदार्थो का एक ही सुई से उपयोग करने वाले को.
- हीमोफिलिक या थैलेसीमिया के मरीज, जिन्हें बार-बार रक्त लेने की आवश्यकता पड़ती है.
- डाॅक्टर, नर्स और अस्पताल के अन्य कर्मचारियों को.
ऐसे होता है संक्रमण
- रक्त और रक्त उत्पादों के संचरण से.
- असुरक्षित यौन संपर्क से.
- इंजेक्शन लगाने में उपयोग की जाने वाली संक्रमित नीडिल (सुई) से.
- संक्रमित सर्जिकल उपकरण, रेजर आदि से.
- गर्भवति महिला से उसके शिशु को.
लोगों की असावधानी की वज़ह से यह बीमारी तेजी से फैल रही है. स्वास्थ के प्रति सावधानी बरती जाएं तो इससे बचा जा सकता हैं. अच्छी बात यह है कि हेपाटाइटिस के बचाव के लिए टीका उपलब्ध है जिसकी वज़ह से रोग से बचने के चांस अधिक होते हैं, लेकिन यदि इस रोग के प्रति सावधानी बरती जाएं तो और अच्छा रहेगा.
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